सुरक्षा क्लियरेंस के बाद ही मिलेगी CAA से नागरिकता, हाई पावर कमेटी ही करेगी फैसला; क्या है नियम…

सुरक्षा क्लियरेंस के बाद ही मिलेगी CAA से नागरिकता, हाई पावर कमेटी ही करेगी फैसला; क्या है नियम…

भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून को लागू कर दिया है, जिसके चलते दिसंबर 2014 से पहले भारत आए पड़ोसी मुल्कों के पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिल सकेगी।

इस नियम के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान से आने वाले रिफ्यूजी भारत के नागरिक बन पाएंगे। इस कानून से उन लाखों लोगों को फायदा होने की उम्मीद है, जो सालों से भारत में तो रह रहे हैं, लेकिन उनके पास कोई अधिकार नहीं हैं।

हालांकि इन लोगों को यह नागरिकता महज आवेदन करने से ही नहीं मिलेगी। इसके लिए एक तय प्रक्रिया है, जिसका पालन करना होगा।

इसमें सबसे अहम है सुरक्षा जांच होना। उसकी रिपोर्ट के बाद ही आवेदकों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी। होम मिनिस्ट्री की ओर से जारी आदेश के अनुसार आवेदनों की जांच के लिए एक सशक्त समिति का गठन किया जाएगा।

विस्तृत आदेश में कहा गया, ‘सशक्त समिति आवेदनों पर इन्क्वायरी कर सकती है। वह आवेदन पर एक रिपोर्ट मांग सकती है। इनमें से एक सुरक्षा क्लियरेंस भी होगा।

सुरक्षा एजेंसियों की ओर से जब मंजूरी मिल जाएगी, तभी आवेदनों को आगे बढ़ाया जाएगा। आवेदन मिलने पर सुरक्षा एजेंसियों का क्लियरेंस भी पोर्टल पर अपडेट किया जाएगा।’ 

सीएए के नियमों के अनुसार राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश के स्तर पर नागरिकता के लिए आवेदन होगा। इन आवेदनों का रिव्यू होम मिनिस्ट्री और सुरक्षा एजेंसी द्वारा भी किया जाएगा।

नागरिक संशोधन कानून, 2019 के तहत उन लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान रखा गया है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत में शरण के लिए आए थे।

हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख पंथ के वे लोग इसके तहत आवेदन कर सकेंगे, जो उत्पीड़न की वजह से भारत में आए थे। सरकार के मुताबिक हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लोगों की वास्तविक शरणस्थली भारत ही है। ऐसे में यदि उनका कहीं भी दुनिया में उत्पीड़न होता है तो वे भारत का ही रुख करेंगे।

ऐसी स्थिति में भारत को उन्हें शरण देनी चाहिए। इसी मकसद से यह कानून बनाया गया है।

बता दें कि दिल्ली, राजस्थान, यूपी समेत कई राज्यों में बड़ी संख्या में तीन पड़ोसी देशों से उत्पीड़न का शिकार होकर आए लोगों की आबादी बसी है। यही नहीं इन लोगों में बड़ी संख्या दलित समुदाय के हिंदुओं की है। ऐसे में इन्हें शरण देने के फैसले का एक बड़ा वर्ग स्वागत कर रहा है।

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