सिपाही कमल राम, जिसने इटली के लिए लगा दी थी जान की बाजी, अंग्रेजों से पाया बहादुरी का सबसे बड़ा तमगा…

सिपाही कमल राम, जिसने इटली के लिए लगा दी थी जान की बाजी, अंग्रेजों से पाया बहादुरी का सबसे बड़ा तमगा…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए इटली पहुंचे हैं।

वहां उनका स्वागत इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी ने किया। तीसरे कार्यकाल का कार्यभार संभालने के बाद यह प्रधानमंत्री का पहला विदेश दौरा है।

उल्लेखनीय है कि भारत-इटली का पुराना नाता रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने बेनिटो मुसोलिनी के फासीवादी शासन और नाजी जर्मनी से इटली को आजाद कराने के लिए मित्र देशों की सेनाओं के अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 50,000 से अधिक भारतीय सैनिकों ने इटली में लड़ाई लड़ी थी।

इटली के युद्ध क्षेत्र में सैनिकों को दिए जाने वाले 20 विक्टोरिया क्रॉस में से छह भारतीय थे। बता दें कि विक्टोरिया क्रॉस ब्रिटेन का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

अंग्रेजों ने भारतीय सेना में युवा पुरुषों को भर्ती किया ताकि वे युद्धक्षेत्रों में वीरता पूर्वक लड़ सकें।

भारतीय सेना में जवानों में कमल राम भी शामिल रहे, जो उस समय 18 वर्ष के रहे होंगे। वह स्वेच्छा से ब्रिटिश भारतीय सेना की 8वीं पंजाब रेजिमेंट में शामिल हो गए।

विश्व युद्ध के दौरान इटली को आजाद कराने के लिए 4, 8 और 10वीं इन्फैंट्री डिवीजनों को तैनात किया गया था। कमल राम की रेजिमेंट 8वीं इन्फैंट्री डिवीजन का हिस्सा थी। 

युवाओं से भरी थी 8वीं इन्फैंट्री डिवीजन
इस दौरान जर्मन ने कई किलेबंदी की थी जो पश्चिम में टायरहेनियन सागर से लेकर पूर्व में एड्रियाटिक सागर तक फैली हुई थी। 8वीं इन्फैंट्री डिवीजन सितंबर 1943 में सीरिया के रास्ते इटली पहुंची।

8वीं इन्फैंट्री डिवीजन, सैनिकों का ऐसा दल का जो हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदायों के युवाओं से भरा था। इसमें भारतीय स्वेच्छा से लड़ने के लिए आगे आए, उस दौरान युवा सैनिक सिर्फ 18 और कुछ तो 16 साल के थे।

बहादुरी से लड़े थे सिपाही कमल राम
12 मई, 1944 को 8वीं पंजाब रेजिमेंट ने गुस्ताव लाइन पर हमला किया। गारी नदी पार करने के तुरंत बाद उनकी कंपनी को सामने और किनारों पर चार जर्मन मशीन गन पोजिशन ने घेर लिया।

पुलहेड की रक्षा के लिए पोस्ट को सुरक्षित करना बहुत जरूरी था। कंपनी कमांडर ने दुश्मन को दाईं ओर से पीछे धकेलकर पोस्ट को सुरक्षित करने के लिए सैनिकों से कहा।

इसके बाद सिपाही कमल राम कंटीली तारों को चीरते हुआ आगे बढ़े और दुश्मन के ठिकाने पर हमला कर दिया। उन्होंने एक जर्मन सैनिक को मार गिराया और मशीन गन को शांत कर दिया।

जब एक अन्य जर्मन ने उसकी बंदूक छीनने की कोशिश की, तो कमल राम ने राइफल बट से उसे मार गिराया। तभी सिपाही कमल राम पर गोलियों से हमला हुआ।

कमल राम गोलियों से बचते हुए दूसरी मशीन गन पोजीशन की ओर चले गए। उन्होंने ग्रेनेड फेंके और दुश्मन की तोपों को खामोश कर दिया और शेष दुश्मन ने आत्मसमर्पण कर दिया। वह एक कंपनी हवलदार की सहायता के लिए आगे बढ़े, जो तीसरी मशीन गन को शांत करने के लिए हमला कर रहा था। उन्होंने अकेले ही दो मशीन गन पोजीशन पर नियंत्रण कर लिया और तीसरी पर कब्जा करने में मदद की।

अंग्रेजों ने दिया सबसे बड़ा बहादुरी सम्मान
बाद में जब एक प्लाटून आगे बढ़ी तो एक घर में छिपे जर्मनों ने आगे बढ़ते सैनिकों पर गोलीबारी की। जिसके बाद सिपाही कमल राम घर की ओर भागे।

उन्होंने एक जर्मन को मार गिराया और दो अन्य को पकड़ लिया।

उनकी सेवा के लिए, किंग जॉर्ज VI ने 27 मई, 1944 को इटली में सिपाही कमल राम की छाती पर सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस लगाया। वह विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित होने वाले दूसरे सबसे कम उम्र के भारतीय थे। 

The post सिपाही कमल राम, जिसने इटली के लिए लगा दी थी जान की बाजी, अंग्रेजों से पाया बहादुरी का सबसे बड़ा तमगा… appeared first on .

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *